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BHAKTAMAR STOTRA

  • परम पूज्य आचार्य श्री भारतभूषण जी गुरुदेव image

    By - परम पूज्य आचार्य श्री भारतभूषण जी गुरुदेव

  • 1 students
  • 8 Hours 20 Min
  • (0)

Course Requirements


Course Description

भक्तामर स्तोत्र एक अत्यंत पूज्य और प्रभावशाली जैन स्तोत्र है, जिसे आचार्य मानतुंग देव ने रचित किया है। इस कोर्स के माध्यम से, आप इस दिव्य स्तोत्र को समझने, स्मरण करने और श्रद्धापूर्वक उच्चारण करने की कला को सीखेंगे। यह कोर्स आचार्य श्री भरतभूषण जी गुरुदेव के मार्गदर्शन में आयोजित किया जा रहा है, जिनकी गहरी आध्यात्मिक समझ और अनुभव ने लाखों भक्तों को मानसिक और आत्मिक शांति की दिशा में प्रेरित किया है। गुरुदेव के द्वारा दिए गए अद्वितीय मार्गदर्शन से, आप भक्तामर स्तोत्र के उच्चारण और इसके आध्यात्मिक लाभों को गहराई से समझ पाएंगे।

यह कोर्स सभी स्तरों के साधकों के लिए उपयुक्त है, चाहे आप इस स्तोत्र के प्रति नए हों या अनुभव प्राप्त करना चाहते हों। इस कोर्स में हम आपको भक्तामर स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक का गहन अर्थ, सही उच्चारण की विधि और आध्यात्मिक लाभों को समझाने के साथ-साथ ध्यान और साधना के व्यावहारिक तरीके भी सिखाएंगे।

कोर्स के प्रमुख आकर्षण:

  • प्रत्येक श्लोक का विस्तृत विवरण: प्रत्येक श्लोक के अर्थ और उसका आध्यात्मिक महत्व समझाना।
  • उच्चारण तकनीक: सही उच्चारण और लय में श्लोक का पाठ सीखें, ताकि स्तोत्र का प्रभावी और शुद्ध रूप से उच्चारण हो सके।
  • आध्यात्मिक लाभभक्तामर स्तोत्र के पाठ के लाभों को समझें, जैसे मानसिक शांति, चिकित्सा और आध्यात्मिक उन्नति।
  • प्रैक्टिकल गाइडेंस: दैनिक जीवन में भक्तामर स्तोत्र का पाठ कैसे करें, ताकि इसका अधिकतम लाभ मिल सके।
  • इंटरएक्टिव सत्र: लाइव प्रश्नोत्तरी और व्यक्तिगत मार्गदर्शन के माध्यम से अपने ज्ञान को और गहरा करें।

Course Curriculum

  • 28 chapters
  • 28 lectures
  • 0 quizzes
  • 8 Hours 20 Min total length
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1 भक्तामर स्तोत्र की रचना का इतिहास
11 Min


1 मंगलाचरण
10 Min


1 मै भी आपकी स्तुति करूंगा
10 Min


1 मै बुद्धि हीन भी आपकी स्तुति करता हूँ
10 Min


1 हे जिनेन्द्र भगवन ! आप के
10 Min


1 मैं- अल्पज्ञ, भक्तिवश, आपकी स्तुति करने को तैयार हुआ हूँ
N/A

जिस प्रकार से सिंह के समक्ष आये हुए अपने शावक को बचानेके लिये हरिणी, अपने शक्ति का विचार ना करते हुए, बीच मे आ जाती है, और उसके रक्षण के लिये उद्यत होती है, उसी प्रकारसे हे, समस्त मुनियोंके स्वामी, हे मुनिश, मै भि अपनी अल्पमती का विचार ना करते हुए, आपके भक्तिवश, अपने शक्ति से ज्यादा कार्य, अर्थात आपकि स्तुति करने कटीबध्द हुआ हुँ


1 मुझ अल्पज्ञानी को आपकी भक्ति ही बोलने को विवश करती हैं
8 Min

जैसे आम्र वृक्ष मे मोहर कलिका आते हि, कोयल अपने आप को रोक नही पाती और कुजन करने लगती है, वैसे हि ज्ञानी लोगोके उपहास का पात्र मैं अल्पमती, आपके प्रति मेरे भक्ति के प्रति विवश होकर हि आपकि स्तुति मे उद्युक्त हुआ हुँ।


1 आपकी स्तुति से, प्राणियों के, अनेक जन्मों में बाँधे गये पाप कर्म क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं
8 Min

जैसे सूर्य के उदय मात्रसे उसके प्रकाशसे रात्री मे छाया अंधकार विपलमे नष्ट हो जाता है, वैसेहि आपके नाम मात्र लेनेसे, अनेक जन्मोंमे एकत्रित किये हुए, उस प्राणीके पाप पलभरमे नष्ट हो जाते है, अर्थात आपके नाम कि महिमा अपरंपार है।


1 मुझ मन्दबुद्धि के द्वारा भी आपका यह स्तवन प्रारम्भ किया जाता है
10 Min

हे भगवन्। जैसे पानि एक बुंद कमलपत्र के सानिध्य से मानो मोती का रुप धारण करती है, अर्थात कमलपत्र गिरी एक पानी कि बुंद मोतीसमान दिखती है, वैसे हि आपके प्रभाव मेरा यह सामान्य स्तोत्र भि जन जन का चित्त हरने वाला होगा, जिसे मै अब करने जा रहा हुँ


1 आपका स्तवन तो दूर, आपकी पवित्र कथा भी प्राणियों के पापों का नाश कर देती है|
8 Min

जैसे कमल को विकसित करने के लिये स्वयं सूर्य को सरोवर तक नही जाना पडता, उसकी लाखो मिल दूर कि प्रभा, एक किरण हि वह कार्य कर देती है, वैसेहि, आपकि कथाहि प्राणीमात्र के दु:खनिवारण का कार्य कर लेती है, उसके लिये समस्त दोषोसे रहित ऐसी आपकि स्तुति करना अनिवार्य नही है।


1 आपकी स्तुति करने वाले पुरुष पृथ्वी पर यदि आपके समान हो जाते हैं तो इसमें अधिक आश्चर्य नहीं है
8 Min

हे त्रिभुवन नाथ! हे समस्त प्राणीयोंके स्वामी! सत्य गुण को धारण करके जो भि आपकि इस पृथ्वीतल पर स्तुति भक्ती करता है, वह शीघ्र आपके समान लक्ष्मी का ( मोक्षलक्ष्मी) धारक हो जाता है, इसमे आश्चर्य क्या है? क्योंकि ऐसे स्वामी का प्रयोजन जो अपने सेवक को अपने समान ना कर दे। अर्थात आप हि एक ऐसे स्वामी है, जो अपने भक्तोंको अपने समान बननेका अवसर देते हो।


1 आपके दर्शन के पश्चात् मनुष्यों के नेत्र अन्यत्र सन्तोष को प्राप्त नहीं होते
20 Min

आप का दर्शन ऐसा है, कि अनिमेष ( पलक झपकाये बगैर) देखते हि रह जाये। जो एक बार आपके दर्शन कर ले, उसे कही और किसीके भि दर्शन से संतुष्टता नही मिलती, जैसे एक बार क्षीरसमुद्र का चंद्रकांतिके समान और मधुर जल पीने के बाद लवण समुद्र के जल किसे पसंद आयेगा? हे त्रिभुवन के एकमेव अनुपम आभुषण जैसे भगवन। आपको बनानेमें इस पृथ्वी के समस्त अद्भुत और सुन्दर परमाणू खर्च हो गये, और यह या ऐसे परमाणु अब इस पृथ्वीपर नही पाये जाते, अर्थात आपके रुप का धारी अब इस धरा पर कोई और हो हि नही सकता। अर्थात आप अनुपम और अद्वितीय सुन्दर हो।


1 आपका मुख तीनों लोक में अनुपम है
11 Min

मै आपको चंद्रमा कि उपमा नहि दे सकता, क्युंकि, कहाँ वह कलंकयुक्त चंद्रमा जो दिनमे पलाश के पत्र के समान फिका और कांतिहीन हो जाता है, और कहाँ आपका वह तेजोमय कांतिमान मुख जो मनुष्य, देव, तथा धरणेंद्र के नेत्रोको हरने वाला और तीनो लोकोकि उपमाओंको जितनेवाला अर्थात तिनो लोकोंमे अनुपम है। अर्थात चंद्रमा आपके मुख के समक्ष कुछ भि नही है।


1 आपके गुण तीनों लोको में व्याप्त हैं
9 Min

पौर्णिमा के चंद्र के कलाओं समान उज्ज्वल आपके गुण तीनो लोकोंके उनकी स्तुति के द्वारा व्याप्त है, नि:संशय, त्रिलोक के अद्वितीय स्वामि जिनके नाथ हो ऐसे आश्रित गुणोको उन्हे कही भि आने जाने से कौन रोक सकता है । अर्थात आपके उज्ज्वल गुणोंकि चर्चा तिनों लोकोंमे सदैव होते रहती है।


1 आपका मन देवागंनाओं के द्वारा किंचित् भी विक्रति को प्राप्त नहीं कराया जा सका
13 Min

जैसे प्रलयकाल कि पर्वतोंको भि हिला देनेवाली वायु, मेरु पर्वत को रजमात्र भि कंपायमान नही कर सकती वैसेहि आप का अविकारी है, यह देवांगनाओ द्वारा किसी भि विकृतिको प्राप्त नही होता, और यह आश्चर्य कि बात भि नही है। आपका मन अविकारी निश्चल है।


1 आप अपूर्व जगत् प्रकाशक दीपक हैं
10 Min

जिसे प्रलयकाल कि पर्वतोंको भि हिला देनेवाली वायु भि नही बुझा सकती, जिसे जलने के लिये तेल, तथा बाती कि जरुरत नही है, जिसका प्रकाश निर्धुम्र है, और जो तिनो लोक को प्रकाशीत करता है, ऐसे अनुपम, स्वयंप्रकाशीत ज्ञानदीप आप हि हो।


1 आप एक साथ तीनों लोकों को शीघ्र ही प्रकाशित कर देते हैं
11 Min

हे मुनीन्द्र। आप ऐसे प्रकाशपुंज हो, जो ना कि सूर्य के समान कभी अस्तंगत होते है, ना हि राहुसे ग्रसित होते है, और ना हि मेघ आपकि आभा को परास्त कर पाते है; सुर्य से अतिशय महिमाधारी आप तीन लोकोंको एक साथ हि प्रकट अर्थात प्रकाशीत कर देते हो। अर्थात आप के ज्ञान का प्रकाश तिनो लोकोंमे नित्य विद्यमान रहता है।


1 आपका मुखमण्डल समस्त जगत को अंधकार मे प्रकाशीत करने वाला एक अपुर्व, चंद्रमा के समान है
13 Min

जो हमेशा उदय मे रहे, मेघ भि जिसे फिका ना कर पाये और राहु से ग्रसित हो, जिसमे कालिमा ना आये ऐसा आपका मुखमण्डल समस्त जगत को अंधकार मे प्रकाशीत करने वाला एक अपुर्व, चंद्रमा के समान है। अर्थात आप मुख के कांति, आभा और शांति समस्त जगत के मोहांधकार को नष्ट कर सम्यक्त्व को प्रकट कराती है। अर्थात आपके दर्शन मात्रसे मोह का नाश हो जाता है।


1 आप का होना हि, मार्गदर्शक तथा मोहनाशक है
7 Min

जैसे पके हुए धान्यके खेतोंसे जो धरती शोभायमान हो रही हो, वहा मेघोंका कोई प्रयोजन नही है, वैसे हि, सुर्य के जैसे दिनका और चंद्रमाके जैसे रात्रीका अंधकार आप अपने आभासे, ज्ञानसे नष्ट करते हो, तो चंद्र और सूर्य कि क्या आवश्यकता? जिसे आपके दर्शन हो जाये, उसे किसी और सुर्य-चंद्र के दर्शन कि कोई जरूरत नही। आप का होना हि, मार्गदर्शक तथा मोहनाशक है।


1 आप का ज्ञान अद्वितीय है
12 Min

आपके पास अवकाश पाकर अथवा आपके सानिध्य मे ज्ञान ऐसे सुशोभित होता है, जैसे कांतिमान मणी- रत्नोमें प्रकाश गुणित होता है, बाकि सबका ज्ञान जैसे हरी और हर का, ऐसे लगता है, जैसे काँच के छोटेसे टुकडेपर प्रकाश गिरनेसे दिखता हो। अर्थात आप का ज्ञान इस समस्त विश्व मे एकमेव ज्ञान है, एक ज्ञान है, केवल ज्ञान है, जिसके सामने बाकि ज्ञान जैसे रत्न के समक्ष कोई काँच का टुकडा रख दिया हो।


1 आपको देखने के बाद मन तृप्त हुआ
18 Min

इस पृथ्वी पर मैने विष्णु और महादेव देखे, तो ठिक हि है, क्योंकि उन्हे देखकर आपको देखने के बाद मन तृप्त हुआ, हृदय को संतोष प्राप्त हुआ, अच्छा हुआ, कि मैने उन्हे पहले देखा, अन्यथा एक बार आपको देखने के बाद क्या इस पृथ्वी का और कोई भि देव जन्म जन्मांतर मे भायेगा? अर्थात आपके समान कोई देव नही, आपकि किसीसे तुलना नही, जो एक बार आपके दर्शन कर ले, आपके चरण मे आ जाये, फिर उसे कोई अन्यमत कि प्रशंसा नही होती। आपका वीतराग रुप हि मन को शांति तथा स्थिरता प्रदान करता है।


1 आप जैसे पुत्र को दूसरी माँ उत्पन्न नहीं कर सकी
11 Min

सैकडो स्त्रिया सैकडो पुत्रोंको जन्म देती है, लेकिन आपको जन्म देने के बाद माता किसी और को जन्म नही देती, जैसे पुर्व दिशा मात्र से हि सूर्य उदित होता है, वैसेही आप अपनी माता के एकमेव पुत्र होते है। अर्थात आप जैसे गुणोके भंडार धारक एक पुत्र को जन्म देने के बाद वह माता धन्य हो जाती है। और कोई संतान वह नही चाहती है, सामान्य पुत्रोंको जन्म देनेवाली माताये अनेक पुत्रोंको जन्म देनेमे हि धन्यता मानती है।


1 आप हि एकमात्र सूर्य के समान निर्मल तेजस्वी और मोहांधकार पार परम पुरुष है
13 Min

हे मुनीन्द्र। तप करने वाले, मोक्ष को प्राप्त करने कि चाह करने वाले आप को पाने कि हि चाह रखते है, क्योंकि वे जानते है, आप हि एकमात्र सूर्य के समान निर्मल तेजस्वी और मोहांधकार पार परम पुरुष है। आप हि शिव है और आप हि शिवमार्ग। अर्थात आपहि मोक्ष है और आप हि मोक्षमार्ग। अर्थात मोक्ष कि चाह रखने वालोंको आपके शरण मे आकर आपके बताये हुए रास्ते पर हि चलना है, और दूसरा कोई शिव भि नही और शिव मार्ग भि नही।


1 आप शाश्वत, विभु, अचिन्त्य, असंख्य, आद्य, ब्रह्मा हैं
8 Min

संत पुरुष आपको हि शाश्वत मानते है, जिसका व्यय नही होगा, विभु कहते है, जो सर्वत्र व्याप्त है, अचिन्त्य कहते है, जिसका यथार्थ स्वरुप का चिंतन कोई नही कर सकता, असंख्य कहते है जिसके गुण, रुप असंख्य है; आद्य कहते है, जो कर्मभूमीके प्रारंभसे है, ब्रह्मा कहते है, जो आत्मस्वरुप है, ईश्वर कहते है, जो सबके इश है; अनंत कहते है, जो अनंत गुण, वीर्य, सुख, दर्शन और ज्ञान से अनंत है; अनंगकेतु कहते है, जिसने सब विकारोंका नाश किया हो; योगीश्वर जो योगीयोंके स्वामी है, नाथ है; विदितयोग कहते है, जिसने योग को जाना, धारा है और समझाया है; अनेक जिसका ज्ञान अनेकांतमय है; एक कहते है, जिसे एक मात्र और सम्पुर्ण ज्ञान , केवलज्ञान है; और अमल कहते है, जिसने कर्मरुपी मल को धो दिया है और परमशुक्ल आत्मा को धारण कर रहे है।


1 आप ही बुद्ध हैं
11 Min

विबुध्द जनोसे अर्चित ज्ञान के धनी होनेसे आप बुध्द कहलाते हो; तिनो लोक मे व्याप्त रहकर शांति प्रदान करनेवाले होनेसे आप को शंकर कहा जाता है; जो स्खलनशील है, उनके लिये आप धीर हो, आधार हो; मोक्ष का मार्ग प्रतिपादित करनेसे आप विधान अथवा ब्रह्मा हो, हे भगवन ; नि:संशय पुरुषोमे श्रेष्ठ आपहि नारायण भि कहे जाते हो। अर्थात आपके अनेक रुप है, आपके हि अनेक नाम है।


1 तीनों लोकों के दुःख को हरने वाले आपको नमस्कार हो
11 Min

आपकि महिमा अपरंपार है। आपको मेरा नमस्कार हो। तिनो लोक के आर्तता अर्थात दु:खोंका नाश करने वाले आप को मेरा बारंबार नमन। इस धरातल के निर्मल आभुषण अर्थात धरातल को सुशोभित करनेवाले आपको मेरा वंदन हो। तिनो जगत के स्वामी, परमेश्वर आपको मेरा प्रणाम हो। संसार समुद्र को सोखनेवाले अर्थात मोक्ष मार्ग प्रकट करनेवाले और स्वयंभि मोक्ष को प्राप्त होनेवाले हे भगवन आपको मेरा बार बार नमन है।


1 आप गुणोसे भरपुर और निर्दोष हो
14 Min

आप गुण के समुद्र है। समस्त गुण आपको अपना यथार्थ स्थान जानकर आपके आश्रय मे रहते है, और सुशोभित होकर अपने आपको धन्य मानते है और किसी और मे नही पाये जाते। औरोंके आश्रय पाकर दोष भि अहंकार युक्त होते है, और आपके पास आनेका विचार उन्हे स्वप्न मे भि नही छुता। अर्थात आप गुणोसे भरपुर और निर्दोष हो।


1 भगवन अशोक प्रातिहार्य से युक्त तेजस्वी सूर्य प्रतिभासित होते है
28 Min

अष्टप्रातिहार्योंमेसे एक ऐसे अशोक वृक्ष कि छाया मे विराजमान होकर भि आप अपने अतुल्य तेज से आभासे उस छाया को ग्रसित करते ऐसे नजर आते हो, जैसे सघन मेघोंके पास तेजस्वी सूर्य अपनी आभासे अंधकार चिरता हुआ, सुशोभित दिखता है।


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